Monday, September 20, 2010

अमर नाथ गाथा

जब गूंजे स्वर एक साथ
बोलो जय बाबा अमरनाथ,
शोले भड़के हिम के ह्रदय में
हुआ अम्लाछादित घाट घाट ।

क्या भूल गए वह जन सागर
जो उमड़ पड़ा था सड़कों पर ,
काश्मीर जब बंद हुआ था ,
हिन्दू शक्ति के दम पर।

जिस सर्दी में बहता पानी
भी जम कर हिमखंड हुआ
ऐसी भीषण सर्दी में भी
था लोहू लावा बना दिया,

और चिनाब से पूछो तो ,
कितनी बेटी बलिदान हुई
और जोहर की अग्नि से
कितनी गलियां शमशान हुई

मात्र शक्ति का देख ज्वार ,
नतमस्तक होती है सरकार
कानों में रुई फंसा ली थी
सुन थाली चम्मच की खनकार।

यद् है क्या वह रक्तिम भू
मुखर्जी हुए जन्हा उत्सर्ग
प्रथम बलिदान हुए थे वो
बचाने को धरती का स्वर्ग ।

अमरनाथ इतिहास में जो
अमर रहेगा नाम
भुनंदन कुलदीप वही
जिसने था किया विषपान ।

गर्म तेल के उन अस्त्रों को
कैसे भूलूं जिनके बल पर
माँ बहनों ने लाज बचाई
और व्यथित मन से वह
गाथा कैसे गाऊं
जब युवकों की हुई
मृत्युं के साथ सगाई।

और मुसलमानों ने
कलमा खूब सुनाया
धर्मं बदलने को काफी
शोषण करवाया
अल्ला हु अकबर के
नारे खूब लगाये
पर भारत माँ के बेटों
ने बस यह गाया
"नमस्ते सदा वत्सले मात्र भूमे
त्वया हिन्दू भूमे सुखं वर्धितोहम "
हम कट मरेंगे यही गाते गाते
मगर धर्म का पथ न छोड़े
कभी हम ।


भारत माता की जय.....



यह कविता एक वर्ष लगभग एक वर्ष पूर्व
नरेन्द्र सहगल द्वारा सम्पादित पुस्तक
अमर नाथ गाथा नमक पुस्तक से प्रेरित होकर
अन्य व्यक्तिओं तक उस सत्य को पहुँचाने एवं दूसरों
को उस पुस्तक को पड़ने की प्रेरणा देने के लिए लिखा था
आज इसे आपको समर्पित करने का मन हुआ


शब्दकार : आदित्य कुमार

Thursday, September 2, 2010

जन्माष्टमी के पावन पर्व पर ...आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं


चली सखियों के संग राधिका रानी ,
मटकी लेकर भरने को पानी,
मधुबन में अतिशय हरियाली ,
कूकती कोयल झूमती डाली ,

पनघट से मटकी भर कर के ,
लौट के घर को , जा वो रहीं थी ।
सखियों के संग मिल कर के कोई
गीत सुहाना गा वो रहीं थी ।

दूसरी ओर.....

यशोधरा नंदन कृष्ण कन्हैया ,
चरा रहे ग्वाल सखा संग गैया ।
देख के राधा को जा छिपे कान्हा ,
आड़ से मटकी पे साधा निशाना।

मटकी है तोड़ी भला किसने यह,
सोच रही थी राधा की सखियाँ ।
पेड़ों की झुरमुट में कौन छिपा वह
खोज रहीं थी राधा की अँखियाँ।

राधा जी जन जाती हैं की कौन हैं....

हम जान चुके हैं की कौन छिपा है
मुरली मनोहर सामने आओ ।
तोड़ते हो क्योँ मटकी हमारी ,
क्यों छेड़ते हो ,हमको बतलाओ ।

जाएंगी हम अब गाँव तुम्हारे ,
मैया को सब करतूत बताने ।
ऐन्ठेगी जब वो कान तुम्हारे ,
तब आएगी अकल ठिकाने ।

कृष्ण जी कहते हैं ...........

हे बृज भूषन राधिका रानी ,
रुष्ट न हो हम ला देंगे पानी ,
तुम हो मेरे लिए प्राण प्रिया तुम
समझी नहीं वह प्रीत की बानी ।

उत्तर प्रतिउत्तर का क्रम सुरु हो जाता है ..........

मार पड़ेगी ये सोच के कैसा ,
प्रीत का ढोंग रचाए रहे हो।
छोड़ के माखन खाना क्यों ,
कैसे माखन आज लगाये रहे हो ।

ये सत्य है राधा के प्रेम है तुमसे
ये पूछ लो चाहे सारे मधुबन से ।
बृज रज कण या बृज जन जन से ,
ये पूछ लो चाहे ये मुरली की धुन से ।


मुरली बजा कर स्वांग रचा कर ,
जीत लो चाहे सारे मधुबन को ।
पर बात मेरी यह मान लो छलिया
जीत न पाओगे राधा के मन को ।

ऐसा सुन कर कृष्ण भगवान् मुस्कुराते हैं और.....

काढ कटी से वेणु उसी छन
मंद मंद मुस्काए रहे थे ।
मंत्र मुग्ध सी राधा खड़ी थी
कान्हा मुरली बजाये रहीं थी ।

काल गति भी थम सी गयी थी
त्रिभुवन भी हर्षाये रहे थे।
रिमझिम पुष्पों के वर्शनमें ,
राधा कान्हा नहाये रहे थे।


अभी इस काव्य का पूरा होना शेष है
यह अब से दो वर्ष पूर्व लिखा गया है जब मैं
१२ में पढता था .........
आज इसे अअपे समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ .....