Tuesday, August 20, 2013

और नहीं कुछ शेष रहे।

मुझे जलाओ पीडानल में, उस सीमा तक,
जिस पर अहंकार मरता है,
अभिमान आहें भरता है,
बाकि न कुछ द्वेष रहे,
और नहीं कुछ शेष रहे।

हे देव ! काट दो बंधन सारे ,
एक नहीं सब होवें प्यारे ,
न इर्ष्या का अवशेष रहे,
और नहीं कुछ शेष रहे।
चिंता छोड़ करें सब चिंतन
सुखमय हो जाए हर जीवन
उन्नति देश करे
और नहीं कुछ शेष रहे।

 शब्द्कार : आदित्य  कुमार 

2 comments:

Aditya Rana said...

सादर धन्यवाद् आपका मान्यवर ई. प्रदीप कुमार साहनी जी

Aditya Rana said...

सादर धन्यवाद् भाई Darshan jangra जी

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