Monday, January 31, 2022

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Saturday, June 19, 2021

milkha ji mahaprayan

Thursday, August 27, 2020

Gagan Me Laharta Hai Bhagwa Hamara | गगन में लहरता है भगवा हमारा | Reci...

Thursday, August 6, 2020

हर पांच बरस के बाद यदि बारिश होगी | चुनाव | Har Paanch Baras Ke baad ...

यह कविता चुनाव के समय मेंढकों की तरह बाहिर आ जाने वाले प्रत्याशियों और बगुला भगत प्रत्याशियों से सावधान करने के लिए लिखा था।

Sunday, July 5, 2020

जय परम पवित्रे जय हो | Pram Pavitra bhagwa dhwaj ko samarpit kavita

Wednesday, August 14, 2019

चाहे जान निकल कर गिर जाए, भू पर न तिरंगा गिर पाए


चाहे जान निकल कर गिर जाए,
भू पर तिरंगा गिर पाए

है जूनून बहुत , है सुकून बहुत
आजादी जीने वालो को
उजला है चमन करना है नमन
सरहद पर मरने वालों को
चलती है पवन मुस्काता गगन
लहराता तिरंगा प्यारा है
इसकी गरिमा गौरव के लिए
अपना जीवन तक वारा है
चाहे आंधी हो , तूफ़ान चले
तिरलोक भले ही हिल जाए
चाहे जान निकल कर गिर जाए,
भू पर तिरंगा गिर पाए 

टुकड़ा ये नहीं कपडे का कोई
ये है अधिनायक भारत का
मिल जाता भले बाज़ारो में
सम्मान  दिलों में है  इसका
इस पर पड़े कभी कदम कोई
पड़े कभी ये राहों में
यदि ऐसा हुआ, तोह ध्यान रहे
पीड़ा सुलगेगी आहों में
जो गिरे स्वयं , बलिदान हुए
जिससे ये तिरंगा लहराए
चाहे जान निकल कर गिर जाए,
भू पर तिरंगा गिर पाए

इसका भूमि पर गिर जाना
है तिरिस्कार भूनंदन का
यह पुण्य पताका है अपनी
यह है अधिकारी वंदन का
इसकी खातिर कुर्बान हुए
वीरों का श्रेष्ठ समर्पण है  
जो नहीं चुकाया जा सकता
उनका हम पर ऐसा ऋण है
आने वाली नव पीढ़ी पर
अपना भी कुछ ऋण हो जाये
चाहे जान निकल कर गिर जाए,
भू पर  तिरंगा गिर पाए



Wednesday, August 21, 2013

पीछे हट जाने का डर है।।

घोर तिमिर है,
कठिन डगर है,
आगे का कुछ नहीं सूझता,
पीछे हट जाने का डर है।

मन में इच्छाएं बलशाली
शोणित में भी वेग प्रबल है,
रोज लड़ रहा हूँ जीवनसे
टूट रहा अब क्यों संबल है।  

मैंने अपनी राह चुनी है
दुर्गम, कठिन कंटकों वाली ,
जो ऐसी मंजिल तक पहुंचे
जो लगे मुझे कुछ गौरवशाली।  

धूल धूसरित रेगिस्तानी हवा के छोंकें
देते धकेल , आगे बढ़ने से रोकें ,
सूखा कंठ, प्राण हैं अटके
कब पहुंचूंगा निकट भला पनघट के।  

आगे बढ़ना भी दुष्कर है
मन में मेरे अगर मगर है ,
आगे का कुछ नहीं सूझता
पीछे हट जाने का डर है।। 

किन्तु गीता में लिखा हुआ है
तू फल की चिंता मत करना ,
अपना कर्म किये जा राही
निर्णय तो मुझको है करना। 

सूरज भी निर्बाध गति से चलता है
निश्चित ही ये घोर तिमिर छटना है,
और साथ ही छट जाएगी घोर निराशा
लक्ष्य हांसिल करने की सीढ़ी है आशा।  

मन में आशा
और अधरों की प्यास,                                        
इतना निश्चित है
ले जाएगी मुझे लक्ष्य के पास।  

घोर तिमिर है,
कठिन डगर है,
पीछे मुड़कर नहीं देखना
पीछे हट जाने का डर है।। 

Poet : Aditya Kumar 

Tuesday, August 20, 2013

burn me in the fire of suffering, at that level,

  burn me in the fire of suffering, at that level,
           where the ego dies,
              Pride Cries,
         no malice and pain,
        should not be remain. 


         almighty! Cut all bond of fascination,
          should be dear one all the creation,
                  remnants of jealousy,
                 Should not be remain.

           Do the musings, inspite of worries ,
               human value should rise,
                     A bad phase,
               Should not be remain. 

        Poet : Aditya Kumar 

और नहीं कुछ शेष रहे।

मुझे जलाओ पीडानल में, उस सीमा तक,
जिस पर अहंकार मरता है,
अभिमान आहें भरता है,
बाकि न कुछ द्वेष रहे,
और नहीं कुछ शेष रहे।

हे देव ! काट दो बंधन सारे ,
एक नहीं सब होवें प्यारे ,
न इर्ष्या का अवशेष रहे,
और नहीं कुछ शेष रहे।
चिंता छोड़ करें सब चिंतन
सुखमय हो जाए हर जीवन
उन्नति देश करे
और नहीं कुछ शेष रहे।

 शब्द्कार : आदित्य  कुमार 

Thursday, August 15, 2013

कभी कभी मुझको लगता है जिन्दा जन आधार नहीं है

बार बार हमसे क्यों आकर उलझ उलझ कर
उलझ चुके कितने ही मुद्दे सुलझ सुलझ कर
ऐसे मुद्दे सुलझाने में वक्त करें क्यों जाया
अब तक सुलझा कर, बतला दो क्या पाया
उनको अपना स्वागत सत्कार समझ ना आया
किश्तवाड़ में हमें ईद त्यौहार समझ न आया
इतना सब कुछ हो जाने पर भारत चाहेगा मेल ?
शायद भारत को डर हो, कहीं रुक न जाये खेल। 
रत्ती का व्यापार नहीं है, चिंदी भर आकार नहीं है
भारत के उपकारों का उनको कुछ आभार नहीं है 
कभी कभी मुझको लगता है, भारत में सरकार नहीं है
कभी कभी मुझको लगता है जिन्दा जन आधार नहीं है


मै परिचित हूँ परिस्थिति क्या होती है युद्धों में
पर क्या समझौता उचित लग रहा है इन मुद्दों में
जिनके शीश कटे हैं उनकी माताओं से जानो
बेटा, पति, भाई खोने के दुःख को तो पहचानो
चुप्पी से भारत की सेना का स्वाभिमान गिरता है
और नहीं कुछ सैनिक में बस देश प्रेम मरता है
देश प्रेम मर जाने से शत्रु साहस बढ़ जाता है
छोटे से छोटा शत्रु भी भारत पर चढ़ आता है
पर क्या समझेंगे वो जो अब तक सत्ताधारी है
फिर से सत्ता हांसिल करने की केवल तैयारी है
कभी कभी मुझको लगता है, भारत में सरकार नहीं है
कभी कभी मुझको लगता है जिन्दा जन आधार नहीं है

कल फिर से भारत में हम आजादी पर्व मनायेगे
आजादी की खुशियों में फिर झूमे नाचेंगे गायेंगे
बलिदानी वीरों को केवल पुष्पांजलि दे देने से
थोडा झंडा झुका के उनको श्रधांजलि दे देने से
भारत में पैदा होने का धर्म नहीं पूरा होता है
भारत में पैदा होने का कर्म नहीं पूरा होता है
अपना केवल दाइत्व नहीं होता पोषण परिवारों का
रण लड़ना पड़ता है सबको भारत के अधिकारों का
बलिदानी वीरों का कहीं बलिदान न खाली जाये
कोटि कोटि सन्तति माता की दूध लजा न जाये
कभी कभी मुझको लगता है, भारत में सरकार नहीं है
कभी कभी मुझको लगता है जिन्दा जन आधार नहीं है

शब्दकार : आदित्य कुमार