Tuesday, August 3, 2010

श्रधा सुमन

दिन के उजाले रातों के
वीराने लगने लगते हैं ,
जब खंजर तेरी यादों के
दिल में चुभने लगते हैं ।

जब हम मन ही मन घुट जाते हैं
सारे आंसू पी जाते हैं,
जब पैमाने खली हो कर ,
एक ओर हो जाते हैं ,
जब मधु शाला के दरवाजों में
भी सांकल चढ़ जाती है ,
तब धरती से सूरज की दूरी
थोड़ी बढ जाती है ।

रातों को तेरी यादों में
जगना मज़बूरी लगती है।
और दिवास्वप्नो की आहट,
आँखों पर भरी लगती है।

तब भी हम तरुणाई लेकर ,
बिन सोए अंगड़ाई लेकर ,
प्रतिदिन मधुशाला जाते है
और तुम्हारी यादों को हम
श्रधा सुमन चढाते हैं।

11 comments:

उपेन्द्र नाथ said...

nice poem

नीलांश said...

acchi rachna...

visheshkar antim ki panktiyaan...
तब भी हम तरुणाई लेकर ,
बिन सोए अंगड़ाई लेकर ,
प्रतिदिन मधुशाला जाते है
और तुम्हारी यादों को हम
श्रधा सुमन चढाते हैं

Anonymous said...

nice.......

Aditya Rana said...

utsah vardhan karne k liye main upendra ji , abhishek ji aur anjali sharma rai ji ka abhari hun aur asha karta karta hun k aap aise hi mera sath dete rahenge


dhanyavad

प्रकाश पंकज | Prakash Pankaj said...

रातों को तेरी यादों में
जगना मज़बूरी लगती है।
और दिवास्वप्नो की आहट,
आँखों पर भरी लगती है।

achchhi panktiyann
likhte rahiye
yahan bhi kabhi padhariye:
http://prakashpankaj.wordpress.com

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nice poems

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