Sunday, October 24, 2010

चुनाव

हर पांच बरस के बाद
यदि बारिश होंगी
जो भीगेगा निश्चित
उसको खारिश होगी।

पर रखना यह ध्यान
दावा भी बाँटेंगे
मत दाता का तलवा
तक भी चाटेंगे

कुछ रोज दया की मूरत
बनकर बरसेंगे
और पांच बरस तक
फिर मतदाता तरसेंगे

ऐसे प्रत्याशी पर
जितने भी मत पड़ते है
पांच बरस तक मत
पेटी मै ही सड़ते है

चौबीस घंटे पांच
रोज बिजली आएगी
और पुनः फिर पांच
बरस तक कट जायगी

कागज पर कुछ योजनाये
निर्माण करेंगे
पांच बरस के बाद
नहीं प्रमाण मिलेंगे

और चुनाव से पहले
भी कुछ पर्चे बनते जायेंगे
जिनके अंडर ये अपने शासन

ऊँचे ऊँचे मंचो से ये
लम्बी चौड़ी हांकेंगे
और पांच बरस तक
हम बगुले से झांकेंगे

जिनका कच्चा चिटठा
लिखा हुआ है थाने में
जिनके दिन के २३ घंटे
बीत रहे मैखाने मै

ले हरे हरे पत्तो की रिश्वत
मूछों को सहलाता है
वही पहन कर कोरी खादी
संसद में घुस जाता है।

हो वशीभूत कर्त्तव्य के
मतदान हमें करना होगा
ओर दूध से धुला हुआ
प्रत्याशी वरना होगा।

जब तक ऐसे प्रत्याशी
हम दिल्ली पहुंचाएंगे
पांच बरस तक प्रतिरोज
हम घर बैठे पछतायेंगे


जन जागरण को समर्पित यह काव्य प्रयत्न दो वर्ष पूर्व किया गया था .......

आदित्य कुमार
शब्दकार

3 comments:

उपेन्द्र नाथ said...

aaditya ji
very nice...........bahoot hi sahi kaha hai aap ne is kavita ke madhyam se.

Unknown said...

Very Very nice.......

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Mr. Realestate said...

very nice Poem
Nice Blog
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