घोर तिमिर है,
कठिन डगर है,
आगे का कुछ नहीं सूझता,
पीछे हट जाने का डर है।
कठिन डगर है,
आगे का कुछ नहीं सूझता,
पीछे हट जाने का डर है।
मन में इच्छाएं बलशाली
शोणित में भी वेग प्रबल है,
रोज लड़ रहा हूँ जीवनसे
टूट रहा अब क्यों संबल है।
शोणित में भी वेग प्रबल है,
रोज लड़ रहा हूँ जीवनसे
टूट रहा अब क्यों संबल है।
मैंने अपनी राह चुनी है
दुर्गम, कठिन कंटकों वाली ,
जो ऐसी मंजिल तक पहुंचे
जो लगे मुझे कुछ गौरवशाली।
दुर्गम, कठिन कंटकों वाली ,
जो ऐसी मंजिल तक पहुंचे
जो लगे मुझे कुछ गौरवशाली।
धूल धूसरित रेगिस्तानी हवा के छोंकें
देते धकेल , आगे बढ़ने से रोकें ,
सूखा कंठ, प्राण हैं अटके
कब पहुंचूंगा निकट भला पनघट के।
देते धकेल , आगे बढ़ने से रोकें ,
सूखा कंठ, प्राण हैं अटके
कब पहुंचूंगा निकट भला पनघट के।
आगे बढ़ना भी दुष्कर है
मन में मेरे अगर मगर है ,
आगे का कुछ नहीं सूझता
पीछे हट जाने का डर है।।
मन में मेरे अगर मगर है ,
आगे का कुछ नहीं सूझता
पीछे हट जाने का डर है।।
किन्तु गीता में लिखा हुआ है
तू फल की चिंता मत करना ,
अपना कर्म किये जा राही
निर्णय तो मुझको है करना।
तू फल की चिंता मत करना ,
अपना कर्म किये जा राही
निर्णय तो मुझको है करना।
सूरज भी निर्बाध गति से चलता है
निश्चित ही ये घोर तिमिर छटना है,
और साथ ही छट जाएगी घोर निराशा
लक्ष्य हांसिल करने की सीढ़ी है आशा।
निश्चित ही ये घोर तिमिर छटना है,
और साथ ही छट जाएगी घोर निराशा
लक्ष्य हांसिल करने की सीढ़ी है आशा।
घोर तिमिर है,
कठिन डगर है,
पीछे मुड़कर नहीं देखना
पीछे हट जाने का डर है।।
कठिन डगर है,
पीछे मुड़कर नहीं देखना
पीछे हट जाने का डर है।।
Poet : Aditya Kumar
1 comments:
Publish online book with Ebook Publishing company in India
Post a Comment